।। याचना ।।
हे विश्व विधाता, हे दीनदयाल
तेरी लीला अपरंपार
कण-कण में बिराजमान
समझे ना इंसान
पल-पल करते हैं भूल
अब कर रहे हैं कबूल
परमेश्वर
कर रहे हैं कबूल
लहू का रंग एक है
जन ने किया है भेद
मन से करते हैं खेद
अब दे रहे हैं टेक
प्रभु जी
एक दूजे को टेक
अमृत भरा है संसार में
भूल गए संस्कार
विष कर दिया आहार को
अब कर रहे हैं विचार
परमात्मा
अब कर रहे हैं उपचार
तूने दिया अनमोल रतन
जन ने किया है पतन
आंखों में दिखता कफन
कर रहे तुझे नमन
परमात्मा
लागी तुझसे लगन
परमेश्वर
हो गए तुझमे मगन
- फोरम शाह