माया
संसार मे डूब कर देखा ,हाथ पकड़ में आई माया।
छाया जैसी बन गई माया,यह मिट्टी की है काया।
पल पल हसाया,पल पल रुलाया,
हर पल सोया,खुद को ही गाया।
तन भी खोया, मन से खोया ,
कण कण खोया,जग में भुलाया।
जहाँ तहाँ का खाया ,कुछ नहीं भाया,
ऐसा नाट्य रचाया ,फिर तू पछताया।
अपंग सा तू बन गया ,
जब यम का बुलावा आया।
अब समझ में आया,
क्या थी यह संसार की माया !
~ फोरम शाह